विवाह सम्बन्धी
विवाह संस्कार का विशेष स्थान है | एक प्रकार से विवाह संस्कार के द्वारा ही स्त्री तथा पुरुष मिल कर पूर्णता को प्राप्त करते हैं | विवाह के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा एवं व्यर्थ माना गया हैं | विवाह संस्कार द्वारा व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त करता हैं,संतान के जन्म से उसका वंश आगे को बढ़ता हैं | विवाह के पश्चात ही व्यक्ति गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर सकता हैं | मानव जीवन के चार आश्रमों में गृहस्थाश्रम को विशेष महत्व प्राप्त हैं | ग्रहस्थ जीवन में व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ मिलकर अनेक पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करता हैं | विवाह के द्वारा ही उसके जीवन में एक ऐसी स्त्री का आगमन होता हैं जो जीवनपर्यंत उसके साथ मिलकर जीवन के संघर्षों को जीतने में उसका साथ देती हैं | ऐसा माना जाता है कि पुरुष के जीवन से अगर स्त्री अलग कर दी जाए तो इस सृष्टि का आकर्षण ही समाप्त हो जायेगा,पुरुष के जीवन से आनंद समाप्त होकर नीरसता का समावेश होने लगेगा और अंततः जीवन का मूल्य ही समाप्त हो जायेगा | विवाह के द्वारा ही पुरुष को स्त्री का सानिध्य प्राप्त होता है,इसलिए विवाह संस्कार को विशेष स्थान प्राप्त है | विवाह संस्कार को सबसे अधिक महत्व क्यों दिया जाता है?इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है | कुछ व्यक्ति एवं अल्पज्ञानी विद्वान विवाह संस्कार को विवाह सम्पन्न होने तक के विधि विधानों तक सीमित करके देखते हैं | वर-वधू का विवाह सम्पन्न हो गया,इसी के साथ विवाह संस्कार भी सम्पन्न हो गया,किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | विवाह के साथ ही व्यक्ति गृहस्थाश्रम में प्रवेश करता है | ग्रहस्थ जीवन में रहते हुए ही उसे अनेक प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को पूरा करना पड़ता है | वर्तमान में व्यक्ति मृत्युपर्यंत ग्रहस्थ जीवन में ही लिप्त रहता है | इस कारण विवाह संस्कार को सर्वाधिक महत्व प्राप्त है | इसके अतिरिक्त विवाह संस्कार से अंतिम संकर अर्थात अंत्येष्टि संस्कार के बीच कोई अन्य संस्कार भी नहीं है |